Sunday, February 5, 2017

बस्तर बचाओ संघर्ष समिति और मुख्यमंत्री के साथ चर्चा.


बस्तर बचाओ संघर्ष समिति और मुख्यमंत्री के साथ चर्चा.
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बस्तर बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति का प्रतिनिधि मंडल आज मुख्यमंत्री रमन सिंह मिला और विस्तार से चर्चा की .
चालीस मिनट की इस महत्वपूर्ण बैठक में बस्तर में हो रहे मानवाधिकार के हनन के मामलों से लेकर विभिन्न मुद्दों पर सार्थक बातचीत हुई .
प्रतिनिधि मंडल में अरविन्द नेताम – पूर्व केन्द्रीय मंत्री 
जनक लाल ठाकुर – अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा 
आनंद मिश्र – वरिष्ट समाजवादी  कामरेड संजय पराते – राज्य सचिव, सी पी एम ,सुधा भारद्वाज, महासचिव, छत्तीसगढ़ पी यु सी एल ,सुनाऊराम नेताम, आदिवासी विकास परिषद्,छत्तीसगढ़ इकाई   ,कामरेड नन्द कुमार कश्यप, छत्तीसगढ़ किसान सभा ,आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन  .  शामिल थे  .
समिति की तरफ से मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया गया .
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            बस्तर बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति
        दिनांक 5 फरबरी 2017  

प्रति,
श्री रमन सिंह,
मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़

महोदय,

हमारे इस मंच में करीब 25 सामाजिक-राजनैतिक संगठन शामिल हैं जिन्होंने समय समय पर विचार गोष्ठी, ज्ञापन, पदयात्रा एवं प्रदर्शन के माध्यम से बस्तर संभाग के आदिवासियों पर नक्सली उन्मूलन के नाम पर हो रहे क्रूर दमन और मानव अधिकार हनन पर निरंतर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की है. हमने इस तारतम्य में 27 अक्टूबर 2016 को छत्तीसगढ़ शासन को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा था.

16 नवम्बर 2016 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने, पत्रकारों और शिक्षाविदों समेत, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों के विरुद्ध पुलिस के दुश्मनीपूर्ण रवैय्ये के आरोपों का स्वतः संज्ञान लेते हुए टिपण्णी की थी, कि वह एक वर्ष से छत्तीसगढ़ में चल रही घटनाओं से बहुत अधिक चिंतित है. 7 जनवरी 2017 को आयोग ने, अभिलेख के आधार पर, प्रथम दृष्ट्या पाया था कि राज्य के पुलिसकर्मियों ने 16 आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, यौनिक तथा शारीरिक हिंसा की थी. इस बाबत राज्य के मुख्य सचिव को नोटिस ज़ारी किया गया.
 अंततः 30 जनवरी 2017 को आयोग ने छत्तीसगढ़ शासन के वरिष्ठतम अधिकारीयों को दिल्ली तलब कर उन्हें निर्देशित किया कि वे 3 फरवरी 2017 तक बस्तर में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य सरकार का एक्शन प्लान तैयार कर प्रस्तुत करें. 
हमें जानकारी मिली है की राज्य सरकार ने एक 6 सूत्रीय एक्शन प्लान पेश किया है, तथा आई.जी एस.आर.पी कल्लूरी को छुट्टी पर भेजने के बाद बस्तर की कमान डी.आई.जी श्री सुन्दर राज को सौंपी है.
परन्तु बस्तर में आदिवासियों के मानव अधिकारों की रक्षा करने एवं वास्तविक शान्ति स्थापित करने के लिए मात्र कागज़ पर योजनाओं से नहीं, बल्कि आदिवासियों की गुहार सुनने, उनकी ग्राम सभाओं से वास्तविक परामर्श करने, उनके जन प्रतिनिधियों और आदिवासी समाज और संगठनों के प्रतिनिधियों के विचारों को सम्मान देने की आवश्यकता है. 

थानों की संख्या और क्षेत्र के सैन्यीकरण को बढ़ाने की बजाय - आदिवासियों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को लागू करना, लोकतान्त्रिक संस्थाओ को आदिवासियों के प्रति संवेदनशील बनाना, सिविल प्रशासन को सुरक्षा बलों के अतिरिक्त दबाव से मुक्त रखना, प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता को कायम रखना होगा. राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध फर्जी मुकदमों का इस्तेमाल बंद करना होगा. आदिवासी जनता में पुनः व्यवस्था के प्रति विश्वास पैदा करना होगा.  
इसके लिए हम पुनः आपसे आग्रह करते हैं:-

1. वर्तमान में शिक्षाविद नंदिनी सुन्दर (एवं अन्य), तथा बेला भाटिया पर; आदिवासी महासभा के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम एवं माकपा सचिव संजय पराते पर; जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप की वकील शालिनी गेरा, प्रियंका शुक्ल आदि पर; आम आदमी पार्टी के जगदलपुर सचिव रोहित आर्य पर; एवं पत्रकार संतोष यादव पर, राजनैतिक द्वेष भावना से लगाये गए फर्जी मुकदमों की उच्च स्तरीय समीक्षा कर निरस्त किये जावे. मानव अधिकार के लिए कार्य करने वालों के विरुद्ध ऐसे फर्जी मुक़दमे लगाने वाले पुलिस अधिकारियों पर सख्त कारवाही की जाये. 

2. राजनैतिक – सामाजिक कार्यकर्ताओं के पुतला दहन में शामिल सभी पुलिस कर्मियों पर पुलिस फ़ोर्स एक्ट 1966 की धारा 4 के तहत प्रकरण दर्ज कर कारवाही की जाये. ताडमेटला काण्ड में दोषी एवं ज़िम्मेदार पुलिस कर्मियों एवं आई.जी कल्लूरी समेत उनके अधिकारियो को गिरफ्तार कर कारवाही की जाये. आदिवासी बालिका मीना खलखो की हत्या के आरोपी पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया जाये. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के समक्ष लंबित समस्त शिकायतों में ज़िम्मेदार पुलिस अधिकारीयों को उनके निराकरण तक किसी भी प्रकार की पदोन्नति या पुरुस्कार न दिया जाये.

3. पुलिस संरक्षण में बने और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे “सामाजिक एकता मंच”, “अग्नि” जैसे समस्त समूहों की गंभीर जांच किया जाये जिसमें सुब्बा राव और बाबू बोरई जैसे अपराधिक पृष्ठभूमि के लोग शामिल हैं, तथा पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम, आदिवासी नेता मनीष कुंजाम, शिक्षाविद बेला भाटिया, आदिवासी नेत्री सोनी सोढ़ी पर हमला करने वाले इन तत्वों को गिरफ्तार कर अपराधिक कारवाही की जाये.

4. मुठभेड़ों की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच आयोग द्वारा किया जाये. ऐसे जांचों में अनिवार्यतः मारे गए व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों एवं सम्बंधित ग्राम के ग्रामीणों को निर्भय होकर अपना पक्ष रखने का पर्याप्त और बराबर का अवसर प्रदान किया जावे. यौन हिंसा के मामलों में, प्रत्यक्ष आरोपियों के साथ साथ कमांड रिस्पांसिबिलिटी की धारणा के तहत उनके उच्च अधिकारीयों पर भी कारवाही की जाये. राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवं अंतर-राष्ट्रीय मानकों के अंतर्गत स्थापित दिशा निर्देशों का कठोरता से लागू करना चाहिए.

5. प्रस्तावित जिला और राज्य स्तरीय मानव अधिकार संरक्षण समितियों में, वास्तव में मानव अधिकार के लिए कार्यरत, सरकार और सत्तारूढ़ दल से स्वतंत्र, नागरिक समाज के व्यक्तियों को रखा जाये. इसके लिए इन आदिवासी क्षेत्रों में, आदिवासी समाज के लोकप्रिय प्रतिनिधियों से परामर्श किया जाना आवश्यक है.

6. जिन भी व्यक्तियों द्वारा ऐसी समितियों; अथवा उच्च न्यायलय/ उच्चतम न्यायलय; अथवा राज्य या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों के समक्ष; मानव अधिकार हनन की शिकायतें लाई जाती हैं, उन पर पुलिस द्वारा कोई भी कारवाही/ जांच/ पूछताछ करने से पूर्व राज्य स्तरीय मानव अधिकार संरक्षण समिति से अनुमति ली जाये, एवं राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को सूचना दी जाये.

7. राज्य के पत्रकारों द्वारा विचार विमर्श पश्चात प्रस्तावित “पत्रकार सुरक्षा कानून” को आश्वासन के अनुसार तत्काल लागू किया जाये.

8. बस्तर में लम्बे समय से निरुद्ध विचाराधीन आदिवासी बंदियों के मुकद्दमों की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता एवं प्रबुद्ध मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को शामिल करते हुए गठित समिति द्वारा किया जाये.

9. बस्तर संभाग में तमाम विकास योजनाओं से पूर्व पेसा कानून को सख्ती से लागू करते हुए, ग्राम सभाओं को पूर्ण जानकारी देते हुए, दबाव रहित प्रस्ताव प्राप्त किया जाये. लोहंडीगुडा क्षेत्र में टाटा द्वारा वापसी के पश्चात, ज़मीने किसानों को वापस की जाये. नगरनार संयंत्र के निजीकरण पर रोक लगाई जाये. किसी भी क्षेत्र में किसी प्रोजेक्ट के लिए वन स्वीकृति के पूर्व, सुप्रीम कोर्ट के नियमगिरि फैसले के अनुसार तथा ट्राइबल अफेयर्स मिनिस्ट्री के अधिसूचनाओं के अनुसार स्थानीय आदिवासियों को समस्त वन अधिकार – व्यक्तिगत एवं सामूहिक – को पहले प्रदान किया जाये. कैंपो की स्थापना के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाई जाये. पोलावरम बाँध के सम्बन्ध में छत्तीसगढ़ शासन को, स्वयं सुप्रीम कोर्ट में दर्ज किये गए आपत्ति पर कायम रहते हुए, सुकमा जिला के ग्रामों और जंगलों को डूब से सुरक्षा प्रदान करना चाहिए.

10. पांचवी अनुसूचित क्षेत्र बस्तर संभाग में आज आदिवासी समाज की जनता भय के कारण अपने त्यौहार, मेले और शादियाँ तक नहीं मना पा रहे है. वे स्वाभाविक तरीके से न अपनी खेतों की रखवाली कर पाते हैं न वन उपज की तोड़ाई. उनके स्कूलों, अस्पतालों, राशन दुकानों को गाव से हटाकर ब्लाक में या कैंप के पास ले जाया गया है. अक्सर वे पलायन और तस्करी के शिकार है. उनके पंच-सरपंच निरंतर दबाव और भय में है. उनकी संस्कृति, जीवन शैली, जीविका को संरक्षित करने की ज़िम्मेदारी शासन और विशेषकर राज्यपाल की है, जिसमे वे पूर्णतः असफल रहे हैं. आदिवासी सलाहकार परिषद में मात्र सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों के रहने से, वे बस्तर की पीड़ा के बारे में राज्यपाल को उचित सलाह में पूर्णतः विफल रहे हैं, इस परिषद् को पुनर्गठित कर, कही अधिक प्रतिनिधितत्वकारी और सक्षम करना आवश्यक है.

11. बस्तर के इस गंभीर मानवीय संकट के समाधान के लिए बस्तर के समस्त आदिवासी समाज, नागरिक समाज एवं सभी राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ गहन विचार विमर्श के लिए राज्य सरकार को पहल करना चाहिए.

भवदीय 
अरविन्द नेताम – पूर्व केन्द्रीय मंत्री 
जनक लाल ठाकुर – अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा 
आनंद मिश्र – वरिष्ट समाजवादी 
कामरेड संजय पराते – राज्य सचिव, सी पी एम 
सुधा भारद्वाज, महासचिव, छत्तीसगढ़ पी यु सी एल 
सुनाऊराम नेताम, आदिवासी विकास परिषद्,छत्तीसगढ़ इकाई   
कामरेड नन्द कुमार कश्यप, छत्तीसगढ़ किसान सभा 
आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन       

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