Thursday, August 27, 2015

धार्मिक जनगणना और सियासी लाभ

धार्मिक जनगणना और सियासी लाभ


[देशबन्धु ]
27, AUG, 2015, THURSDAY 10:10:49 PM
देश के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त ने मंगलवार को 2011 की धर्मआधारित जनगणना के आंकड़े जारी किए, जिसके मुताबिक हिंदुओं की आबादी में 0.7 प्रतिशत की दर से गिरावट आई है, जबकि मुस्लिमों की आबादी 0.8 प्रतिशत बढ़ी है। भारत में संकुचित सोच का एक तबका है, जिसने हमेशा इस बात का प्रचार करना चाहा है कि अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग में इतनी तेजी से आबादी बढ़ रही है कि ये जल्द ही बहुसंख्यक हिंदुओं के मुकाबले आ जाएंगे। इस डर का इस्तेमाल वे कट्टर हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए करते हैं। हर हिंदू स्त्री 4 बच्चे पैदा करे, या 10 बच्चे पैदा करे, ऐसे बयान देने वाले लोग उस संकुचित सोच वाले वर्ग की अगुवाई करते हैं और यह महज संयोग नहींहै कि जब से केेंद्र में भाजपानीत एनडीए की सरकार बनी है, तब से इस तरह के बयान आए दिन सुनाई पड़ते हैं। धार्मिक जनगणना के जो आंकड़े अभी जारी किए गए हैं, उससे इन लोगों को अपनी कुत्सित विचारधारा को बढ़ाने में मदद ही मिलेगी। सोशल मीडिया के दौर में तथ्यों के बारीक विश्लेषण में लोगों की दिलचस्पी घटी है और वे खबरों को पढ़कर तुरंत अपनी प्रतिक्र्रिया देने या राय बनाने की ओर प्रवृत्त हुए हैं। ऐसे में धार्मिक जनगणना के मुताबिक मुस्लिम आबादी बढऩे की बात भी सियासी लाभ के लिए प्रचारित, प्रसारित की जाएगी, इसकी पूरी संभावना है। यह अनायास नहींहै कि जातीय जनगणना के आंकड़े जारी करने की मांग के बावजूद केेंद्र इस पर टालमटोल का रवैया अपनाए हुए है।
 सरकार ने तमाम उपजातियों के पुनरीक्षण के लिए आंकड़ों को राज्यों को भेजने की बात कहते हुए वहां से रिपोर्ट आने के बाद ही आंकड़े जारी करने की बात कही है। राजनीतिक दृष्टि से जातीय जनगणना के आंकड़ों से राजद, जदयू, सपा जैसे दलों को लाभ मिल सकता है। शीघ्र ही बिहार में चुनाव हैं, जिसमें भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। राजद, जदयू जैसे दल अगर सामाजिक धु्रवीकरण की ताकत से राजनीतिक लाभ हासिल करना चाहते हैं तो अब भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण का दांव जनगणना के इन आंकड़ों के दम पर चलेगी। ध्यान रहे कि बिहार में कुल आबादी दस करोड़ 49 लाख से ज्यादा है। इनमें लगभग 8 करोड़ 60 लाख हिंदू हैं और करीब एक करोड़ 75 लाख से ज्यादा मुसलमान हैं। बिहार चुनाव के अलावा भी देश में नौकरी, शिक्षा, आरक्षण, रोजगार जैसे विभिन्न मुद्दों पर हिंदू व मुस्लिमों की आबादी की बढ़त की तुलनात्मक तस्वीर मनमाने ढंग से पेश कर समाज के धु्रवीकरण का खेल अब और तेजी से चलेगा। धार्मिक जनगणना के आंकड़े जारी करते हुए यह तो बताया गया कि मुस्लिमों की आबादी 2001 से 2011 के बीच कितने प्रतिशत बढ़ी है, लेकिन देश को यह जानना भी जरूरी है कि मुसलमानों की जनसंख्या बढऩे की रफ्तार में दशक दर दशक कमी आई है। 

वर्ष 1981-1991 के जनसंख्या के आंकड़ों में मुसलमानों की जनसंख्या बढऩे की दर 32.9  प्रतिशत थी, जो 1991-2001 में घटकर 29.3  प्रतिशत हो गई और 2001-11 के ताजा आंकड़ों में ये दर घटकर 24.6  प्रतिशत हो गई है। हालांकि मुसलमानों के मुकाबले हिंदुओं की जनसंख्या बढऩे की दर कम तेजी से गिरी है। वर्ष 1981-1991 में हिंदुओं की जनसंख्या बढऩे की दर 22.8 प्रतिशत थी, जो 1991-2001 में घटकर 20 प्रतिशत हो गई और 2001-11 के ताजा आंकड़ों में ये दर घटकर 16.8  प्रतिशत हो गई। इस तरह से वर्ष 1981 से मुसलमानों के बढऩे की दर 32.9 से घटकर 24.6 प्रतिशत पर आ गई। जबकि हिंदुओं की बढऩे की दर 22.8 से घटकर 16.8 प्रतिशत पर आ गई है। हिंदुओं के अलावा सिखों व बौद्धों की जनसंख्या में क्रमश: 0.2 व 0.1 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि ईसाई व जैन समुदाय की आबादी में कोई खास बदलाव नहींदेखा गया है।
 कुछ समय पहले ही सरकार ने जनसंख्या के सामाजिक व आर्थिक आंकड़े जारी किए थे और अब धार्मिक आंकड़े पेश किए हैं। बीते चार वर्षों में यह तस्वीर कुछ और बदली होगी, लेकिन उसका सच जानने के लिए छह साल का इंतजार करना होगा, जब अगली जनगणना की जाएगी। 125 करोड़ से अधिक आबादी और धार्मिक, जातीय, भाषायी व सामाजिक विविधता के देश में जनगणना करना और उसका सही-सही विश्लेषण करना कठिन कार्य है। राजनैतिक दल और सत्ताधारी वर्ग अक्सर इस कठिनाई का सियासी लाभ लेने की फिराक में रहते हैं। उनके लिए यह आबादी वोट हासिल करने का एक जरिया है। 
लोकतांत्रिक, जनकल्याणकारी राज्य की बागडोर संभालने वाली सरकार की चिंता तेजी से बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने, हर वर्ग, हर तबके के लोगों को समानता का अधिकार मिलने, हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने की होनी चाहिए।

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