जब हम प्रेमचंद की बात करते है तो लगता है की अपने बुजुर्गो की बात कर रहे हैं,
प्रलेस बिलासपुर ने हर साल की तरह आज प्रेमचंद जयंती पर चर्चा एवनिंग टाइम्स कार्यालय मे आयोजित की, सबसे पहले नमिता घोष ने " वर्तमान परिपेक्ष्य मे मुंशी प्रेमचंद के साहित्य की प्रासंगिकता " पे अपना पर्चा पढ़ा . पर्चे मे विस्तार से प्रेमचंद की कहानिया उनके उपन्यास की आज के समय ज्यादा जरूरी दिखाई देते हैं , उन्होने कहा की जब तक दुनिया मे गरीब, शोषित और शोषण करने वाले मोजूद तब तक प्रेम चंद हमे रास्ता दिखाते रहेंगे, प्रेमचंद .गोर्की और टैगोर तुलना करते हुये कहा की उनकी आवाज समानता और बराबरी के लिये मिल के संघर्ष करने वालो के साथ रही हैं, शाकिर अली ने इस पर्चे पे अपनी प्रतिक्रिया देते हुये कहा की जब हम प्रेंचंद की बात करते आयी तो लगता है की हम अपने बुजुर्गो की बात कर रहे हैं ,प्रेमचंद से लेकर मुक्तिबोध ,परसाई और अब प्रभाकर चौबे तक उनकी परम्परा को आगे बढ़ाते हैं .प्रेमचंद हिन्दी उर्दू के महान कहानीकार थे ,उन्होने समाज मे परिवर्तन की जो सोच लिखी वही आज भी प्रांगिक हैं .
नन्द कश्यप ने प्रंचंद की कहानी " पशु से मनुष्य " का पठन किया ,बाद मे उन्होने अपनी बात क्रते हुये कहा की प्रेमचंद इस कहानी मे भी क्मुनिस्ट मेनिफेस्टो को गाँधी वादी तरीके से सुलझाने की बात करते हैं , वे मनुष्य की मानवीयता मे भरोसा रखते हैं . उन्हों एए भी कहा की प्रेमचंद की प्रासंगिकता की बात करना ही ठीक नहीं है ,इसका मतलब भी यही होता है की हमे उनकी प्रासंगिता मे शक़ हो गया है,
चर्चा मे प्रलेस के अध्यक्ष नथमल शर्मा ने कहा की जी समय हमे सबसे ज्यादा बोलना चाहिये ,उस समय हम चुप हैं , हमने ,पढ़ना ,लिखना ,सोचना, लड़ना खतम कर दिया हैं जब की इसकी सबसे ज्यादा इसी वक़्त जरूरत हैं, रफीक खान ने साहित्य मे ही नहीं स्कूल की किताबो मे हमे अब दीनदयाल उपाध्याया के साथ दीनदयाल बत्रा को भी पढ़ना पड़ेगा,
गोष्ठी मे नमिता घोष ,उषा किरण बाजपेई ,डा. सत्यभामा अवस्थी ,नथमल शर्मा ,नन्द कश्यप ,रफीक खान ,काली चरण यादव ,शाकिर अली ,साखन दरवे ,मानक लाल रजक ,षिभीत बाजपेई ,सचिन शर्मा , लाखन सिंह आदि हाजिर थे।
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