एक सिख कि तंगनज़री व तंगदिली का गिला जरुर रहेगा : भगत सिंह
पिछले साल रायपुर में बड़ा दर्दनाक वाकया हुआ , कुछ लोगो ने भगत सिंह कि हैट वाली मूर्ति का सर काट लिया और उसपे पगड़ी धारी सर लगा दिया ,बहुत हल्ला हुआ ,कुछ दिनों मूर्ति पे विवाद हुआ कि भगत सिंह पगड़ी ढाई थे कि हैट पहनते थे , कुछ सिख संगत उन्हें सिखी के बिना स्वीकार करने को तैया नहीं थी। खैर विवाद तो निबट गया ,और वहा दुबारा हैट वाला सर लगा दिया गया , मामला धार्मिक पहचान को स्थापित करने का था ,जो आजकल भाजपा कि पहल पे जरी हैं।
में उनका लेख " में नास्तिक क्यों हूँ " कि यद् नहीं दिलाना चाहता ,लेकिन एक घटना बाहर प्रासंगिक है ,जो उनकी सिखी कि पाचन के लिए पर्याप्त हैं।
भगत सिंह तब लाहोर जेल में थे ,उसी समय़ ग़दर पार्टी से संपर्क रखने के आरोप में भाई रणधीर सिंह भी सजा भुगत रहे थे , अपनी रिहाई से कुछ दिन पहले उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई थी। भाई रणधीर सिंघणे यह कहके कि भगत सिंह ने अपने केश कटवा लिए हैं ,उनसे मिलने से इंकार का र्दिया था।
इसके उत्तर में भगत सिंह ने पत्र लिख कर कहा था " में सिख धर्म कि अंग अंग कटवाने कि परंपरा का कायल हूँ ,अभी तो मेने एक ही अंग [ केश ] कटवाया हैं यह भी पेट के खातिर नहीं देश के खातिर , जल्द ही गर्दन भी कटवाऊंगा " लेकिन एक सिख कि तंगनज़री और तंगदिली का गिला जरुर रहेगा।
इसके बाद भाई रणधीर सिंह मुलाकात करने आये ,और अपनी बात का अफ़सोस भी जताया ,
[ कुछ साल पहले अपने गहन मित्र के साथ अमृतसर एक कोंफ्रंस में जाने का अवसर मिला, मुझे जेन के पहले ललित जी ने बताया था कि वहाँ से २५० किलोमीटर आगे फिरोजपुर में भगत सिंह और उनकी माँ कि समाधी है ,मोका मिले तो जरुर जाना , जाना हुआ।
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