छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्रय संगठन (पी.यू.सी.एल)
१६ जुलाई, २०१५
चार सहायक अरक्षों को अगुवा कर हत्या की
छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. द्वारा घोर निंदा
छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन (पी.यू.सी.एल) ने छत्तीसगढ़ औक्सिलिअरी फ़ोर्स (विशेष पुलिस अधिकारी) के चार सहायक आरक्षकों की माओवादियों द्वारा अगुवा कर हत्या की घोर निंदा की है, जो बीजापुर जिले के बेदरे पुलिस थाना में पदस्थ थे.
जैसा कि मीडिया रपटों से पता चला है, कि इन आरक्षकों को जन-अदालत लगा कर इसलिए मारा गया कि उन्होंने सलवा जुडूम अभियान के दौरान अत्याचार किये थे. इनमें से दो आरक्षक सार्वजनिक बस में सफ़र कर रहे थे, और माओवादियों ने इन बसों की तलाशी के दौरान उन्हें बस से उतार लिया था. मृतक आरक्षकों के शवों को माओवादियों ने कुटरू मार्ग पर बैनर और पर्चों के साथ छोड़ दिया था. इसी दौरान खबर मिली है की जिन तीन गांववासियों को कांकेर जिले के रवास गाँव से माओवादियों ने उठाया था उन्हें गत शाम छोड़ दिया गया है.
अगुवा करने और हत्या के खिलाफ पी.यू.सी.एल. अपने सैधांतिक मत पर अडिग है. पूरे विश्व में मानव अधिकार संगठनों ने लगातार और बार-बार मांग की है कि जिनेवा कन्वेंशन में निहित मापदंडों को उन सभी पक्षों को मानना चाहिए जो किसी भी युद्ध या द्वन्द में शामिल हों.
सलवा जुडूम के मृतक नेता महेंद्र कर्मा के पुत्र छविन्द्र कर्मा द्वारा मई महीने में सलवा जुडूम – भाग II को “विकास संघर्ष समिति” के बैनर तले फिर से शुरू करने की घोषणा के बाद यह घटना घटित हुई है. बस्तर के पुलिस महानिदेशक एस.आर.पी.कल्लूरी और मुख्य मंत्री रमन सिंह ने ऐसी पहल को समर्थन दिया था.
वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने ऐसे आन्दोलन से अपने हाथ यह कहकर धो लिए थे कि सुप्रीम कोर्ट ने “नंदिनी सुंदर एवं अन्य” प्रकरण में आदेश दिया था कि सलवा जुडूम को समेट दिया जाए, और इस तरह के सशत्र प्रहिरियों को गैर-संवैधानिक घोषित किया था. एक माह पहले ‘विकास संघर्ष समिति’ द्वारा प्रस्तावित रैली को माओवादियों से खतरे के चलते रद्द कर दिया गया था.
पिछले कुछ महीनों में बस्तर संभाग में व्यापक स्तर पर जन-संघर्ष और जन-आन्दोलन किये जा रहे हैं, और यह सब-के-सब विभिन्न प्रस्तावित औद्योगिक परियोजनाओं के खिलाफ हुए हैं. दिल्मिली में प्रस्तावित अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट और बस्तर जिले में नगरनार-विशाखापत्तनम स्लरी पाइप लाइन, और सुकमा जिले में पोलावरम बाँध के खिलाफ हज़ारों-हज़ार की संख्या में गांववासी लामबंध हुए हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार को इस अवसर पर लोकतान्त्रिक ढाँचे में ग्रामीण समुदायों के साथ संवाद की परिस्थिति निर्मित करनी चाहिए, और कानून के शासन के प्रति उनका विशवास अर्जित करना चाहिए, ताकि राज्य अपने कल्याणकारी कर्तव्य का पालन कर सके, और अनुसूचित इलाकों के लिए संवैधानिक प्रावधानों का आदर करते हुए स्वात्त्ता: को बरकरार रखा जा सके.
संवैधानिक दायरे में उठाये जाने वाले यह कदम लोगों को हिंसक विद्रोह के रास्ते पर जाने से रोकने में ज्यादा कारगर सिद्ध होंगे, न कि महज़ सैनिक कार्यवाही जिसकी नाकामी स्थानीय गुप्तचर जानकारी के अभाव में स्पष्ट दिखाई देती है. आज बस्तर संभाग में सैनिक बलों की मौजूदगी प्रति एक लाख जनसँख्या पर १७७३ है, जब कि पूरे देश में यह देवल १३९ है, वहीँ पूरे छत्तीसगढ़ में भी यह केवल १६९ है, और काश्मीर में भी यह ८०० से अधिक नहीं है.
अभी हाल ही में ओड़िसा के कोरापूट में एक प्रेस सम्मलेन के दौरान सी.आर.पी.ऍफ़. के डायरेक्टर जनरल प्रकाश सिंह ने कहा था कि बस्तर के भीतरी जंगलों में नक्सलियों के शिविरों को ध्वस्त करने के लिए ज़रुरत पड़ने पर ड्रोन जैसे विमानों का इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीँ दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ में ‘तर्कसंगत आधार’ का हवाला देकर २,९१८ स्कूलों को बंद किया जा रहा है, उनमें से ७८२ स्कूल केवल बस्तर संभाग के माओवादियों से युद्ध के इलाके में मौजूद हैं.
डॉ. लखन सिंह, सुधा भारद्वाज
अध्यक्ष महासचिव
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