Friday, July 3, 2015

बस्तर जिले के 138 प्राथमिक, 46 मिडिल, एक हाई और तीन हायर सेकेंडरी स्कूूलों को बंद कर दिया है।


बस्तर जिले के 138 प्राथमिक, 46 मिडिल, एक हाई और तीन हायर सेकेंडरी स्कूूलों को बंद कर दिया है।

हेमंत कश्यप, जगदलपुर (ब्यूरो)। राज्य सरकार ने अपना आर्थिक बोझ कम करने के लिए तीन बिंदुओं को आधार बताकर बस्तर जिले के 138 प्राथमिक, 46 मिडिल, एक हाई और तीन हायर सेकेंडरी स्कूूलों को बंद कर दिया है। इसमें सुलियागुड़ा की 50 साल पुरानी प्राथमिक शाला भी है। बस्ती के स्कूलों को बंद किए जाने से छोटे बच्चों को जंगलों व व्यस्त मार्गों से होकर डेढ़ से दो किमी चल कर स्कूल आना पड़ रहा है।
इस बस्ती के पुराने स्कूलों को बंद करने से पालकों में काफी आक्रोश है। इनका आरोप है कि अधिकारियों ने पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीणों से चर्चा किए बगैर मनमानी तौर पर विद्यालयों में ताला लगवा दिया है। बंद स्कूलों में अभी से जुआ और शराबखोरी शुरू हो गई है। कई अभिभावक अपने बच्चे का नाम स्कूलों से कटवाने का मन भी बना चुके हैं।
50 साल पुराना स्कूल बंद
विभाग ने जगदलपुर ब्लॉक के सुलियागुड़ा के जूनापारा स्थित 50 साल पुराने स्कूल को भी बंद कर दिया है जबकि यहां की प्राथमिक शाला में 22 बच्चे पढ़ रहे थे। अब यहां के बच्चे करीब डेढ़ किमी दूर चीतापदर स्कूल जा रहे हैं। सुलियागुड़ा में पुराना स्कूल भवन तो है वहीं बीते दिनों ही नया प्राथमिक शाला भवन बनाया गया है। विभागीय आदेश के बाद अब यहां के दोनों स्कूलों में ताला जड़ दिया गया है इसलिए ग्रामीण खासे नाराज हैं।
बदबू के बीच पढ़ाई
भाटीगुड़ा स्कूल से लगा बड़ा मुर्गी फॉर्म है। यहां से उठने वाली बदबू के कारण हर साल स्कूल के तीन- चार बच्चे बेहोश होते हैं इसलिए ग्रामीण भाटीगुड़ा प्राथमिक शाला को बंद कर बैदारगुड़ा में शिफ्ट करने की मांग करते रहे हैं, परंतु अधिकारियों ने बैदारगुड़ा के आंगनबाड़ी भवन में 2012 से संचालित प्राथमिक शाला को ही बंद कर दिया। अब वहां के 11 बच्चे भी बदबू भरे माहौल में संचालित भाटीगुड़ा स्कूल के 69 बच्चों के साथ पढ़ने मजबूर हैं।
आने का मन नहीं करता
बैदारगुड़ा से आकर भाटीगुड़ा स्कूल में पढ़ने वाली कु मुन्नी धुरवा (चौथी) व दीपक भतरा (तीसरी ) ने बताया कि नया स्कूल गांव से करीब दो किमी दूर है। नानगूर मार्ग पर काफी गाड़ियां चलती हैं इसलिए बैदारगुड़ा के सभी 11 बच्चे जंगल से होकर स्कूल आते हैं। इधर स्कूल में मुर्गीफॉर्म के कारण हमेशा बदबू रहती है, इसलिए मध्यान्ह भोजन भी नहीं कर पाते। बदबू के कारण पिछले दिनों दो छात्र बेहोश हुए थे। सुलियागुड़ा से चीतापदर प्रायमरी स्कूल जाकर पढ़ने वाली कु शांति (दूसरी)ने बताया कि नया स्कूल बहुत दूर है। अकेले जाने में डर लगता है इसलिए उसके पिता रोज स्कूल छोड़ने जाते हैं। नए स्कूल में जाने का मन नहीं करता।
निर्णय मनमानीपूर्ण
बेदारगुड़ा के हरिराम नाग के दो बच्चे अब भाटीगुड़ा स्कूल पढ़ने जाते हैं। उनका आरोप है कि ग्रामीणों व पंचायत प्रतिनिधियों की सलाह लिए बगैर अधिकारियों ने स्कूल बंद करवाया है। बच्चे जंगलों से होकर स्कूल जाते हैं इसलिए हमेशा सांप -बिच्छुओं का डर बना रहता है। सुभद्रा कश्यप के तीन बच्चे पढ़ने जाते हैं। उन्होंने बताया कि भाटीगुड़ा स्कूल में बदबू के साथ मक्खी का भारी प्रकोप है, आए दिन बच्चे बीमार होते हैं।
बारिश के कारण बच्चों को और परेशानी हो रही है। यहीं के महेन्द्र कश्यप ने बताया कि सरकार बस्तर को शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा कहकर पहले स्कूल खोलती है, फिर अपनी सुविधा के हिसाब से बंद कर रही है। यह कार्रवाई अधिकारियों की मनमानी का उदाहरण है। बैदारगुड़ा की तिलई कश्यप ने बताया कि बैदारगु़ड़ा स्कूूल भवन जंगल के पास निर्माणाधीन है। कम से कम भवन बनते तक स्कूल को नहीं बंद करना था।
वह अपने नातियों को भाटीगुड़ा स्कूल भेजती हैं पर उनकी सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतिंत रहती है। इधर जूनापारा सुलियागुड़ा के धनसिंह बघेल ने कहा कि 50 साल पुरानी शैक्षिक संस्था को बंद करना, एक तरह से ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को बदतर करने का प्रयास है।
विभाग की मनमानी के कारण बस्ती के 22 बच्चों को डेढ़ किमी दूर चीतापदर जाना पड़ रहा है। मुकुंदराम बघेल के तीन बच्चे भी अब बस्ती के स्कूल के बदले चीतापदर स्कूल पढ़ने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि दर्ज संख्या कम होने का बहाना कर पुराने स्कूलों को बंद किया जा रहा है। बेहतर होता मोटी तनख्वाह ले रहे शिक्षकों के प्रति सरकार सख्ती करती। स्कूलों को बंद करने से क्या होगा? पढ़ाने वाले तो आखिर वही शिक्षक हैं।
इनका कहना है
'राज्य सरकार के निर्देश पर जिले के कुल 188 स्कूलों को बंद किया गया है। स्कूलों को बंद करने के पीछे स्कूल शिक्षा विभाग का मानना है कि एक शिक्षक के पीछे 35 बच्चे होने चाहिए। बस्तर के अधिकांश स्कूलों में 10-15 बच्चे ही अध्ययनरत थे औेर दर्ज संख्या बढ़ नहीं रही थी, वहीं शिक्षकों पर लाखों रुपया खर्च हो रहा था। एक ही केम्पस में समान स्तरीय स्कूलों और दो स्कूलों के मध्य की दूरी को ध्यान में रखकर चिन्हित स्कूलों को बंद किया गया है।'
-बृजेश बाजपेई, जिला शिक्षा अधिकारी बस्तर

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