छत्तीसगढ़ में सूदखोरी का सितम, 15 हजार किसान दफन
किसानों की खुदकुशी का यह ग्राफ ��"र भी भयावह हो सकता था, लेकिन एनसीआरबी ने 2011 से 2013 की अवधि में ऐसी मौतों की गणना नहीं की
रायपुर. 14 साल और 14793 किसानों की आत्महत्या। राज्य सरकार को इन मौतों के आंकड़ों से भले ही परहेज हो, लेकिन रोंगटे खड़े कर देने वाली यह सच्चाई राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड में दर्ज हैं। किसानों की खुदकुशी का यह ग्राफ और भी भयावह हो सकता था, लेकिन एनसीआरबी ने 2011 से 2013 की अवधि में ऐसी मौतों की गणना नहीं की। बढ़ती लागत से खेती में हो रहे लगातार नुकसान और ऊपर से सूदखोरों के मकडज़ाल ने किसानों की कमर तोड़ दी है। बावजूद इसके सरकार की अनदेखी से प्रदेश का अन्नदाता अपनी जान देने के लिए मजबूर हो रहा है। शर्मनाक और हैरान करने वाली बात यह भी है कि विधानसभा में मंगलवार को कृषि मंत्री यह कहने से नहीं चूके कि वे एनसीआरबी के आंकड़ों से इत्तेफाक नहीं रखते, जबकि ये आंकड़े राज्य पुलिस ने ही एनसीआरबी को उपलब्ध कराए हैं। वर्ष 2014 के लिए एनसीआरबी की जारी रिपोर्ट में किसानों की खुदकुशी� के मामले में महाराष्ट्र, तेलंगाना और मध्यप्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर है।
शासन बेपरवाह
बोनस� भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में वादा किया कि वह किसानों को धान पर ३०० रुपए प्रति क्ंिवटल बोनस देगी। मगर सरकार ने पिछली बार से धान पर बोनस देना बंद कर दिया है।
एमएसपी भाजपा ने यह चुनावी वादा भी किया कि वह किसानों से 2100 रुपए प्रति क्ंिवटल एमएसपी पर धान लेगी, लेकिन केंद्र में भी इसी पार्टी की सरकार होने� के बावजूद यह नहीं निभाया। बीते दो सालों में ५० रुपए प्रति क्ंिवटल एमएसपी बढ़ा है, जबकि किसान की उत्पादन लागत 20 प्रतिशत बढ़ी है।
फसल बीमा� इस साल मौसम बीमा बंद कर दिया गया है। जानकारों के अनुसार नई फसल बीमा में लाभ आधारित बात नहीं जोड़े जाने और अस्पष्टता के चलते किसानों की हालत और ज्यादा खराब होने वाली है।
पीडीएस में कटौती� राज्य सरकार ने 2013 के बाद से अलग-अलग समय और विभिन्न तरीके से पीडीएस सब्सिडी पर ३० प्रतिशत कटौती की है।
प्रदेश में सबसे सस्ते मजदूर
केंद्र के आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में देश के सबसे सस्ते मजदूर हैं। यहां मनरेगा में मजदूरों को महज १५९ रुपए मेहनताना प्रतिदिन है, जो बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे कम हैं।
जान की दुश्मन बनी सूदखोरी
"पत्रिका" की पड़ताल में सामने आया कि प्रदेश के हर कोने से बेबस किसान सूदखोरों की मकडज़ाल में उलझकर जिंदगी की बाजी हार रहे हैं। दरअसल, कम दर पर कर्ज दिलाने के मोर्चे पर सरकारी एजेंसियां पंगु साबित हुई हैं। सूदखोर कर्ज देने से पहले जमीन, जायदाद, जानवर, मकान और घर के सामान तक गिरवी रख लेते हैं। फिर मूलधन से तीन गुना वसूलने पर भी रहम नहीं करते।� सूदखोर 3 से 5 रुपए प्रति सैकड़ा ब्याज पर पैसा देते हैं, जो चक्रवती ब्याज में बदलता रहता है। पुलिस के अनुसार 3 वर्षों में 300 से ज्यादा सूदखोरी के मामले दर्ज हुए। इस दौरान 40 ने जान गंवाई। इनमें ज्यादातर किसान हैं। राज्य लोक आयोग ने बीते 4 मार्च को सूद कारोबार पर लगाम के लिए छत्तीसगढ़ रेग्यूलेशन ऑफ मनी-लेंडिंग एक्ट-2015 कानून बनाया, लेकिन राज्य में इसका असर अब तक नहीं दिखा है।
बदलते पैमानों में भी नहीं छिपे आंकड़े
एनसीआरबी ने इस बार आत्महत्या को लेकर जो मापदंड तय किए, उससे किसानों के जान देने के मामलों में आधी से ज्यादा गिरावट आ गई। २०११ से २०१३ तक आंकड़ों में किसान का कॉलम हटा दिया गया। ताजा रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्या का कॉलम फिर जोड़ दिया, लेकिन मापदंड परिवर्तित कर दिए। इसके बावजूद प्रदेश में ४४३ किसानों की आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए हैं।
अविश्वास प्रस्ताव पर 24 को चर्चा
राज्य सरकार के खिलाफ नान घोटाला और किसानों की आत्महत्या सहित अन्य मुद्दों पर विपक्षी दल कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को बुधवार को सदन में चर्चा के लिए स्वीकार कर लिया गया और अब इस पर 24 जुलाई को चर्चा होगी। विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने दोपहर साढ़े 12 बजे का समय निर्धारित किया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने अपने सदस्यों को व्हिप जारी कर उपस्थिति अनिवार्य कर दिया है। सदन में भाजपा के 49, कांग्रेस के 39 विधायक हैं। एक विधायक बसपा और एक निर्दलीय हैं। चर्चा के लिए शुक्रवार का दिन निर्धारित होने पर नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा, शुक्रवार का दिन अशासकीय संकल्पों के लिए है। इसे सोमवार किया जाता तो बेहतर होता। कृषि एवं जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने आरोप लगाया कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से बचना चाह� रहा है। इसे लेकर दोनों पक्षों में तीखी नोकझोंक हुई।
सरकार लाए श्वेत पत्र
प्रदेश में 17 लाख छोटे किसान बैंकों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। फायदे में हैं, बस कुछ बड़े किसान। सरकार के हर मोर्चे पर फेल होने के चलते ग्रामीणों का जीना दूभर हो गया है। किसानों की आत्महत्या पर सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।
संकेत ठाकुर, कृषि विशेषज्ञ
पड़ताल कराएंगे
मनरेगा लोगों की आमदनी में सहायक बनती हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में मनरेगा के तहत सबसे सस्ती मजदूरी मिलने की बात पता नहीं थी। पड़ताल कराएंगे।
अजय चंद्राकर मंत्री, पंचायत एवं ग्रामीण विकास
महज रिपोर्ट है
हमारी जानकारी में ऐसा कुछ भी नहीं है कि राज्य के किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कि
हमारी जानकारी में ऐसा कुछ भी नहीं है कि राज्य के किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कि