नटोरियन कलेक्टर के साथी और भ्रष्टाचार का केंद्र बस्तर -
प्रभात सिंह
बस्तर में करप्शन का पायदान कितना नीचे गिर गया होगा ! इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक कलेक्टर जैसे रौबदार पद पर बैठा व्यक्ति एक विद्यालय में छोटे बच्चों से लिए गए अधिक फीस के मामले को दबाने के लिए खुद न्यायपालिका में हस्तक्षेप करने से भी परहेज नहीं करता है | और वह खबर छापने वाले पत्रकारों को नटोरीयन की संज्ञा देने से भी नहीं हिचकता हैं |
अब मान लिया जाय की वहाँ उनके इर्द गिर्द एक आध नटोरियन होंगे भी जिन्हें पत्रकार तो कहा भी नहीं जा सकता है | क्योंकि उनके लिए पत्रकारिता ब्लेकमेलिंग का व्यवसाय है | इसके बूते सुकमा जैसे पिछड़े इलाके में उनका करोड़ों का कारोबार हो जाता है | लेकिन उस कलेक्टर को इतना भी भान नहीं की उसी जगह पर ऐसे पत्रकार भी रहते है | जो उनकी सच्चाई कोर्रा जैसे छोटे हेराफेरी के मामले से लेकर जिले के बड़े घपलों का पर्दाफ़ाश करते रहे हैं |
तो कलेक्टर साहब को किस बात की खीझ है कि आप सुकमा के साथ बीजापुर और दंतेवाड़ा के सारे पत्रकारों को भी उसी तराजू में तौल रहे हैं | जबकि छत्तीसगढ़ में यदि अव्वल दर्जे की पत्रकारिता कहीं होती है तो वह बस्तर के इन्ही इलाकों में होती है | वो अलग बात है कि इन पत्रकारों के कारण बस्तर में कई अधिकारियों की अपने चढ़ावे की कमाई में कमी दिखने लगती है | बस्तर आकर वापस गए अधिकारीयों के घरों में संगेमरमर के फर्श संडास तक देखने को मिलेंगे |
तो कलेक्टर साहब को किस बात की खीझ है कि आप सुकमा के साथ बीजापुर और दंतेवाड़ा के सारे पत्रकारों को भी उसी तराजू में तौल रहे हैं | जबकि छत्तीसगढ़ में यदि अव्वल दर्जे की पत्रकारिता कहीं होती है तो वह बस्तर के इन्ही इलाकों में होती है | वो अलग बात है कि इन पत्रकारों के कारण बस्तर में कई अधिकारियों की अपने चढ़ावे की कमाई में कमी दिखने लगती है | बस्तर आकर वापस गए अधिकारीयों के घरों में संगेमरमर के फर्श संडास तक देखने को मिलेंगे |
आप अंदाजा लगा सकते हैं की ऐसे अधिकारियों के रहते इस सुकमा जिले में कई मामले ऐसे ही लगातार दबाये जाते रहे होंगे | जहां एक कलेक्टर ऐसे छोटे भ्रष्टाचार मामलों में खुद न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा हो | वहाँ इनके मातहत अधिकारी तो लाखों करोड़ों के गबन के मामले तो सेटलमेंट स्तर पर ही निपटा लेते होंगे |
ऐसे में तो अब यही समझा जाए कि सुकमा में जब तक ऐसे अफसर रहेंगे तब तक कोई भ्रष्टाचार की खबर लिखने का मतलब ही नहीं है | क्योंकि ऐसे अफसर तो तुरंत सेटलमेंट की जुगत में लग जाते होंगे | जिले का सबसे बड़ा अफसर ऐसा होगा तो उसके नीचे काम करने वाला अधिकारी कैसा होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं | और इसमें हिस्सा ढूंढने वाले चंद नटोरियन भी हैं जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना ही नहीं है | ये बस्तर में एक पुलिस के एक बड़े अधिकारी से लेकर ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के लिए प्रेस विज्ञप्ति खुद बनाते हैं | क्योंकि उन्हें हर उस खबर पर दाम मिलता है | जिसके लिए बस्तर के गरीब आदिवासियों के तन के कपड़े तक योजनाओं के नाम पर नीलाम हो जाते हैं |
अब आप ऐसे हैं तो आपके जैसे छत्तीसगढ़ में काम करने वाले सारे आईएएस अफसरों को हम आपके जैसा समझने लगे तो ठीक है क्या? आप ही बताइये ! वैसे आपके किये की सजा आपको मिलेगी ही नहीं ! क्योंकि इस छत्तीसगढ़ सरकार में ४५ आईएएस अफसरों के खिलाफ जाँच होनी थी | जिनमें आपके सरीखे १६ जिले के कलेक्टर हैं; कई मामले तो १५ साल भी पार कर गए हैं |
तो क्या अब जनता मान ले की भ्रष्ट लोगों के खिलाफ छत्तीसगढ़ राज्य में अलग से न्याय व्यवस्था खुद जनता को बनानी पड़ेगी | क्या इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्याय कभी आम आदमी के साथ नहीं होगा ? तो क्या इसके लिए कोई अलग तरीके के सरकार की जरुरत है ? सवाल कई है जवाब सिर्फ एक है | सलाम छत्तीसगढ़ |
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