Saturday, November 7, 2015

'सर मैंने पुरस्कार वापस करने वाले साहित्यकारों का विरोध किया.'' -अनुपम खेर पे केंद्रित



'सर मैंने पुरस्कार वापस करने वाले साहित्यकारों का विरोध किया.''

[अनुपम खेर पे केंद्रित ]

[ शशि कुमार सिंह की पोस्ट से साभार ]

मान्यता'
''सर मैंने पुरस्कार वापस करने वाले साहित्यकारों का विरोध किया.''
''लेकिन उन्हें साहित्यकार क्यों कह रहे हैं?साहित्यकार तो आप लोग भी हैं.आप लोगों ने भी तो बहुत कुछ लिखा है.''
''हाँ सर लिखा है.''
''क्या?''
''सर मैंने रामायण और महाभारत पर नए ढंग से लिखा है.''
''सर मैंने भी लिखा है.मैंने वेदों पर लिखा है.''
''सर मैंने गुरु गोलवलकर पर लिखा है.''
''सर मैंने हेडगेवारजी पर एक खंडकाव्य लिखा है.''
''सर मैंने 'स्वच्छ भारत अभियान' पर एक महाकाव्य लिखा है.''
''सर मैंने वर्णाश्रम धर्म पर लिखा है.''
''सर मैंने 'नरेंद्र मोदी:चाय से गाय तक'नामक एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है.''
''ठीक है आप लोग अपना नाम नोट करा दीजिएगा.आप लोगों को इस बार साहित्य अकादमी दिलवा दूंगा.''
''हाँ सर मगर साहित्य अकादमी तो एक को ही मिलेगा न?और हम सब?''
''हाँ भाई मैं सबका ख़याल रखूँगा.और भी तो तमाम संस्थाओं में पद खाली हैं.आप लोग संस्थाओं में खाली पोस्टों की एक सूची सौंप दीजिये.सबको सेट कर दूंगा.''
''हाँ सर अब उन लोगों को समझ में आ जायेगा कि हम भी साहित्यकार हैं.उनके न मानने से क्या होता है.''
''किसके न मानने से ?''
''सर यही पुरस्कार वापस करने वाले लोग हमें साहित्यकार नहीं मानते.''
''तुम लोग इतने से ही परेशान हो.सोचो मुझ पर क्या गुजरती होगी.''
''क्या सर?''
''अरे यही, ये लोग तो मुझे आज तक प्रधानमंत्री नहीं मानते.''
''सर इनके मानने से क्या होता है.हम मानते हैं न.हम आपको विश्वनेता मानते हैं.''
''ठीक है.मैं आपको साहित्यकार मानता हूँ.पूरा संघ मानता है.फिर आप लोग उनकी मान्यता के लिए क्यों परेशान रहते हैं?''
''नहीं सर हम लोग तो बहुत खुश हैं कि आपने हमें साहित्यकार माना.हमारी प्रतिभा को पहचाना.''
''हाँ मगर जैसे आप लोग उनसे मान्यता चाहते हैं न, वैसे ही मैं भी चाहता हूँ.पर ये सब मानते ही नहीं.लेकिन आप लोग ध्यान से सुनिए आप मुझे प्रधानमंत्री मानेगे और मेरी प्रशंसा करेंगे.और मैं आपको साहित्यकार मानूंगा.ठीक है.''
''हाँ सर ठीक है.''
''अब हमें किसी की जरूरत नहीं.''
''सर मुझे भूल गए.''
''अरे अनुपम खेरजी आपको कैसे भूल सकता हूँ.बहुत बहुत धन्यवाद.आपको दादा साहेब फाल्के..अब खुश...''
''सर मगर मेरी एक शर्त है.''
''कैसी शर्त ?''
''सर दादा साहेब फाल्के पुरस्कार का नाम बदलकर नानाजी देशमुख के नाम पर रख दिया जाए.या फाल्के भी जोड़े रखते हैं.तो नानाजी फाल्के अवार्ड.''
''हाँ ठीक है.आप तो वाकई बड़े देशभक्त हैं.''
''जी सर.''
''हाँ मगर मैं आपसे नाराज हूँ अनुपमजी.''
''क्यों सर?''
''नहीं आप किरणजी की बात बहुत मानते हैं.अगर किरणजी हमारी पार्टी में नहीं होती तो आप इन देशद्रोहियों से मोर्चा नहीं लेते.''
''नहीं सर मुझे गलत समझ रहे हैं.फिल्मसिटी में मैं ही तो देशभक्त हूँ.यकीन न आये तो शाह रुख को देखिये.शत्रुघ्न सिन्हा को देखिये.और तो और हेमामालिनी को देखिये.उन्होंने भी शाहरुख को लेकर हमारी पार्टी के नेताओं को खरी-खोटी सुनाई.''
''क्या कहा?''
''क्या सर मैंने क्या कहा?''
''अरे नहीं, आपने कहा हमारी पार्टी.''
''हाँ सर बी.जे.पी.तो मेरी पार्टी ही है न.सब मिलकर बोलो मोदीजी की जय.''
''जय.''
''सरकारजी की जय''
''जय''
''असहिष्णुता जिंदाबाद.''
''जिंदाबाद.''
''देशद्रोही मुर्दाबाद.''
''मुर्दाबाद.'
''साहित्यकार मुर्दाबाद.''
''मुर्दाबाद.''
''अरे तुम लोग मूर्ख हो?अपने को ही मुर्दाबाद कह रहे हो.साहित्यकार मुर्दाबाद?''
''अरे सॉरी सर हम भूल गए थे.धीरे-धीरे आदत पड़ जायेगी.अभी आप ही ने तो हमें साहित्यकार कहा था.अरे हम लोगों को याद रखना होगा, हम साहित्यकार हैं.हा हा हा हम साहित्यकार हैं.''

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