Monday, November 30, 2015

बचाइए...बचाइए.. भगवान को बचाइए

बचाइए...बचाइए.. भगवान को बचाइए


रजकुमार सोनी 

छत्तीसगढ़ में फिर दो किसानों ने मौत को गले लगा लिया है लेकिन सरकार यह मानने को तैयार ही नहीं कि कर्ज के बोझ और सूखे से परेशान किसान आत्महत्या कर रहे हैं। तीन साल पहले जब नेशनल क्राइम ब्यूरो ने किसानों की मौत का आकंडा जारी किया था तब सरकार के नुमाइंदों ने यह सफाई दी थी कि किसान भी शराब पीते हैं। वे भी बीमार होते हैं। पारिवारिक क्लेश से परेशान रहते हैं। सरकार ने अपनी इस सफाई को स्थायी तौर पर प्रिंट करवाकर रखवा लिया है। बस किसान का नाम बदल दिया जाता है। यह सब कुछ ठीक वैसा ही है जैसा माओवादी हमले के दौरान होता है। माओवादियों की कायराना हरकत सामने आ गई। वीभत्स चेहरा उजागर हो गया। माओवादियों से आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी। मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। माओवादियों को उनके घर में घुसकर मारेंगे....आदि....आदि।
अब जैसे ही किसी किसान की मौत होती है थानों में रखे गए कागज के पुर्जों में यह लिख दिया जाता है कि घरेलू कलह से त्रस्त था। पीकर मर गया।
कितने शर्म की बात है कि अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए सरकार अन्नदाता को शराबी-कबाबी और झगड़ालू साबित करने में तुली हुई है।
सरकार और उनके नुमाइंदों को लगता है कि जो कुछ वे बताएंगे जनता उसे गले के नीचे उतार लेगी।
चलिए थोड़ी देर के लिए सरकारी नुमाइंदों की बातों को सच भी मान लिया जाय तब भी यह सवाल स्वाभाविक तौर पर उठता हैं कि किसान शराब का सेवन क्यों कर रहा था। घर में कलह की वजह क्या थी।
किसानों को कर्ज वसूली का नोटिस भेजा जा रहा है। कहा गया था कि हर गांव में चावल रखवाया जाएगा ताकि कोई भूखा न सोए.... लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। दुनिया के पेट को रोटी देने वाला किसान दाने-दाने को तरस गया है।
सरकार को इससे फर्क नहीं पड़ता कि किसान मर रहा है। सरकार के मंत्री और अफसर चेले-चपाटों और परिवार के साथ राम रतन पायो देखने में व्यस्त है। अब तो हॉकी मैच भी हो रहा है। रोज़ खबरें छप रही है कि आज अमुक मंत्री खिलाड़ियों के उत्साहवर्धन के लिए स्टेडियम गए थे। अब तक यह देखने को नहीं मिला है कि किसी मंत्री ने मौत को गले लगाने को मजबूर किसान के घर दस्तक दी है।
इससे ज्यादा दुर्भाग्य कुछ और नहीं हो सकता कि राज्य भीषण सूखे के संकट से गुजर रहा है और प्रदेश के मंत्री-अफसर,धनाढय लोग चुटकुलेबाज कवियों की कविताओं पर ठहाका लगा रहे हैं। बड़ी-बड़ी होटलों में कार्यशाला हो रही है। हर दूसरा मंत्री हवाई जहाज से दिल्ली जा रहा है।
क्या अब तक किसी भी मंत्री/ विधायक और अफसर ने सूखे से निपटने के लिए अपने एक दिन की तनख्वाह को देने का ऐलान किया है। शायद नहीं।
प्रदेश के ढाई लाख कर्मचारियों के नेता हर तीसरे रोज मुख्य सचिव को सातवां वेतनमान लागू करने के लिए ज्ञापन सौपते हैं लेकिन एक भी ज्ञापन ऐसा नहीं दिया गया जिसमें यह लिखा गया हो कि महोदय.... हम अन्नदाता को मरने नहीं देना चाहते। वे हमारा और हमारे बच्चों का पेट भरते हैं। बताइए..हम लोग क्या कर सकते हैं।
हर शरीर में त्वचा होती है और हर त्वचा में छिद्र होते है। इन छिद्रों में संवेदना की बूंदों का प्रवेश होने दीजिए। छिद्रों का बंद हो जाना एक खतरनाक संकेत है।
याद रखिए...यदि हम अन्नदाता को नहीं बचा पाए तो फिर एक दिन ऐसा भी आएगा जब हम तड़प-तड़पकर मरेंगे और कोई हमें बचाने नहीं आएगा। भगवान भी नहीं।
किसान हमारे भगवान भी है। जब हम अपने भगवान को ही मौत के घाट उतार रहे हैं तो फिर भगवान हमें क्यों बचाएंगे।
राजकुमार सोनी
रायपुर छत्तीसगढ़
9826895207

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